
Human Being,Traveller, Reader, Author,
Lucknow, Uttar Pradesh,
Republic of India....
(3)


04/10/2023
... और एक बार तूफ़ान ख़त्म हो गया, तो आपको याद नहीं रहेगा कि आप इससे कैसे गुज़रे, आप कैसे बचे रहे। आपको यकीन भी नहीं होगा कि तूफ़ान सचमुच ख़त्म हो गया है या नहीं। लेकिन एक बात निश्चित है। जब आप तूफ़ान से बाहर आएँगे, तो आप वह व्यक्ति नहीं रहेंगे जो तूफ़ान में फँस गया था। तूफ़ान अपने लिए नहीं आया था, वो आपके लिए ही आया था। यह तूफान आपको एक इंसान के रूप में विकसित करेगा, यह आपके आकाश में रंग जोड़ने के लिए ही आया था...

01/10/2023
" Cleanliness is Godliness"
- Gandhi Ji .
28/09/2023
UPSC टेस्टसीरीज या दुनियाभर की वेबसीरीज... किसी एक का चुनाव करना पड़ेगा....

18/09/2023
गणपति स्थापना लखनऊ में....
महाराष्ट्र में तो गणपति की तैयारी महीनों पहले से शुरू हो जाती है.... मंजीरा, लेज़ियम, डांस, ढोल नगारे, मित्र मंडली... वाह क्या स्वागत होता है भगवान गणेश का...
लखनऊ में भी अब लोगों ने घर पर गणपति बैठाना शुरू किया है.. सभी को भगवान गणपति की स्थापना करनी चाहिए क्योंकि ये ही विघ्नहर्ता हैं, आपके जीवन से सारे विघ्न हर लेंगे....
अस्यैप्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा क्षरन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चार्यम मामेहती च कश्चन।।
गणपति बप्पा मोरया 🙏

17/09/2023
कई साल पहले
अपने समय के
तमाम जवान लड़कों की तरह
मैं भी निकला था घर से
झोले में कुछ कागज डाल कर
पर छोड़िए
इस कहानी में कुछ भी नया नहीं है
आप बतलाइए
आप कब और क्यों आए
इस पराए शहर में।
- भगवत रावत.
14/09/2023
भारत और भारत के लोग अभी भी औपनिवेशिक हैंगओवर के अधीन है... अंग्रेजी के प्रति जुनून अभी भी व्याप्त है और अंग्रेजी जीवन शैली को उन्नत और आधुनिक माना जाता है... आप गांव के पढ़े लिखे हैं, देशी गँवई हैं, तो इस देश की महानगरीय संस्कृति में आप जाहिल,गंवार कहे जाएंगे...
फुल अंग्रेजी आती है, आनी भी चाहिए लेकिन ये सिर्फ एक भाषा है, कोई हमारी तरक्की का मापदण्ड नहीं... वैसे भी अवध क्षेत्र में अंग्रेजी की चोंचले चलते भी नहीं हैं...अंग्रेजी का व्यावहारिक ज्ञान होना चाहिए लेकिन अंग्रेजी वहीं बोलिए जहां उसके बिना काम नहीं चलता है, बाकी हिंदी अवधी गुजराती मराठी तमिल तेलुगु और अपनी मातृभाषा में ही बोलना है...चाहे कोई कुछ भी समझे ....
हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
✍🏻
#हिंदी #हिन्दी #हिन्दीसाहित्य

13/09/2023
कौन कहे? यह प्रेम हृदय की बहुत बड़ी उलझन है,
जो अलभ्य, जो दूर, उसी को अधिक चाहता मन है!
.. प्रेम परम योग है। प्रेम से श्रेष्ठ कोई अनुभव नहीं है। और इसीलिए भक्ति श्रेष्ठतम मार्ग बन जाती है, क्योंकि वह प्रेम का ही रूपांतरण है....

10/09/2023
Financial Skills... वित्तीय कौशल....
आप लोग मुझे ये बताएं कि भारत देश के अंदर 25-45 साल की कितने ऐसे लोग हैं जिनके पास वाकाई कोई Financial बैकअप है ... उंगलियों पर गिन सकते हैं...1-2% हो सकता है और अगर सही में कोई बैकअप है तो सामान्यतः बाप का बैकअप है,कोई Self Created स्वनिर्मित बैकअप नहीं है....
ये तकलीफ की बात है कि एक इंसान जिसने 20 साल बहुत अच्छी पढ़ाई की, जो एक प्रोफेशनल है...उसमें पैसे की कुशलता (money skills) है ही नहीं...वो आर्थिक रूप से संघर्ष कर ही रहा है, कर ही रहा है,कर ही रहा है. ..और 15-20-30 साल तक संघर्ष ही करते रहते हैं...
हमें कक्षा 6वीं 7वीं से (Money Skills)धन कौशल सिखाना चाहिए ...11वीं 12वीं के बाद जब बच्चा निकलेगा तब तक उसे मनी स्किल्स के बारे में कुछ जानकारी हो जाएगी वो ग्रेजुएशन के समय से ही पैसा कमाना सीख लेगा....
हमने खुद अपने बच्चों में ( Limited Belief System) सीमित विश्वास इंस्टॉल किया है कि 25-28 साल से पहले तो आपकी कमाना ही नहीं है... उसके दिमाग में पहले से ही यही स्थापित है कि 25 साल से पहले मेरा पैसा कमाने से कोई लेना देना नहीं है... जब कमाने से मतलब नहीं तो बचने से क्या लेना देना...मां बाप से बस लेते रहो, जब कमाएगा तब बचाएगा ना...
10 साल नौकरी करने के बाद मैंने 30-32 साल वालों को देखा है कि आज भी 1 लाख,1.5 लाख रुपये कमा रहे हैं... 50k ओला उबर बाइक पेट्रोल स्विगी ज़ोमैटो मोबाइल डेटा पर लगा देता है और बाकी घर गृहस्थी का खर्चा करके वो महीने के आखिरी में जीरो पर रहते हैं...ये 30-32 साल वालों का हाल है.. और अगर गलती से उसकी शादी हुई है तो क्या ये खुशहाल रिश्ता रहेगा...और अगर बच्चे हैं तो भगवान ही मालिक है...
फाइनेंस का जो काम 25 साल की उम्र में करना सिखाते हैं , उसे 15 साल की उम्र में सिखा दीजिए बच्चों को...कितनी आर्थिक गतिविधि शुरू हो जायेगी, पैसा कौशल और कौशल के माध्यम से कमाई आप पीढ़ी को एक दशक आगे ले जायेंगे और अपने देश को भी....

08/09/2023
अगर सिलेबस और पिछले वर्षों के पेपर देखे जाएं तो UPSC एग्जाम आसान लगता है, फिर UPSC सबसे कठिन एग्जाम क्यों हो जाता है... UPSC सबसे कठिन एग्जाम इसीलिये हो जाता है क्योंकि इसमें लाखों लोग अपना सब कुछ दांव पर लगाकर तैयारी करते हैं ...

07/09/2023
कभी मिलूंगा तुमसे। तुम्हें बहुत निराश किया गया है। तुम अत्यधिक सोचने से थक गए हो। तुम अकेले महसूस करते-करते थक गए हो। और सबसे ताकतवर होने की रेस से थक चुके हो।
मैं प्रार्थना करता हूं कि तुमको वह आशीर्वाद, खुशी, स्थिरता और समर्थन मिले जिसके तुम हकदार हो। तुम स्वयं के द्वारा बांटे गए सभी प्यार के सबसे ज्यादा योग्य हो...
05/09/2023
हर माता-पिता अपने बच्चों के पालन-पोषण के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। इतिहास के हर काल हर समय हर युग में उन्होंने ऐसा किया होगा। आजादी से पहले का तो ज्यादा आइडिया नहीं था लेकिन आजादी के बाद पुराने लोगों से जो भी सुना और जाना उसे ये जरूर पता चलता है कि संयुक्त परिवार प्रणाली और ग्रामीण व्यवस्था में बच्चे का पालन-पोषण करना आसान था। पहले बच्चे का जन्म होना और उसका जिंदा रहना ही एक उपलब्धि हुआ करता था। चूँकि यह एक ग्रामीण अर्थव्यवस्था थी इसलिए पुरुष हमेशा कृषि गतिविधियों में शामिल रहता था और तकनीकी रूप से उसके पास बच्चों को गुणवत्तापूर्ण समय देने के लिए समय नहीं था। वह काफी सुकून भरा और शांतिपूर्ण समाज था, इसलिये माँ बाप पर बहुत ज़िम्मेदारी नहीं थी।
बच्चे का पालन-पोषण केवल माता-पिता की जिम्मेदारी नहीं थी, यह एक सामुदायिक कार्य और समाज की साझा जिम्मेदारी थी। संयुक्त और विस्तारित परिवार हर बच्चे की सर्वोत्तम संभव तरीकों से देखभाल करते हैं। पूरे परिवार की एक ही चिंता थी कि बच्चा किसी महामारी, किसी जानवर के काटने से न मर जाये। एक बार बच्चा बड़ा हुआ तो सामान्य रूप से बूढ़ा होकर ही मरता था।
न कोई आकांक्षाएं थीं, न भौतिक इच्छाएं, न बड़े शहरों में प्रवास का सपना, इसलिए माता-पिता के मन में कोई हलचल नहीं थी। यह एक शांतिपूर्ण जीवन था और इसलिए माता-पिता के बीच कोई घबराहट नहीं थी।
बच्चों को स्कूल छोड़ने नहीं जाना था क्योंकि स्कूल गांव या गांव के आस-पास ही होता था और बच्चा अपने आप गांव परिवार के दूसरे बच्चों के साथ खेलते हुए स्कूल जाता था। किसी से कोई खतरा नहीं था क्योंकि सब गांव के लोग ही होते थे। खाने पीने का भी ज्यादा लोड नहीं होता था, खेत खलिहान के कच्चे पक्के फल सब्जी हमेशा सुलभ होते थे, गुड़ रोटी घी रोटी जब भी मन करे खा लो। बिजली नहीं थी तो टीवी, डिश, टीवी, मोबाइल और देर तक जागना भी नहीं होता था। जैसे ही सूरज डूबे, तुरंत खाएं और बिस्तर पर चले जाएं क्योंकि रात्रिचर जानवर हमेशा एक खतरा होते थे। जल्दी सोना,जल्दी उठना, जो मिले खा लेना, जहां मन करे खेलना... वह एक जोखिम मुक्त समाज था, वह साझा जिम्मेदारी वाला समाज था और जीवन में कोई शहरी आकांक्षाएं नहीं थीं।जीवन का पूरा लक्ष्य ही सरल जीवन जीना था और बच्चों को बड़ा करने की जिम्मेदारी कम होती थी। इसलिए माँ बाप में प्रेम खूब होता था क्योंकि तुमने ये नहीं किया, मैंने ये किया, तुमने वो नहीं किया, मैं ही सब करता हूं...ये सब नहीं था...
अब आज का समय देखा जाए तो माँ बाप के जीवन में बहुत ज्यादा संघर्ष और चुनौतियाँ हैं। शहरी जोखिम वाले समाज के साथ एकल परिवार। पहले तो बच्चे ही नहीं होते, संघर्ष के बाद, कुछ सामान्य और कुछ के आईवीएफ से होते हैं। भगवान की दया से अच्छी खबर मिली तो गर्भधारण के समय से ही संघर्ष शुरू हो जाता है। माँ को बहुत सारी दवाइयाँ, इंजेक्शन और टीकाकरण लेने पड़ते हैं। जन्म के पहले से लेकर 10 साल तक तो कम से कम 50 टीकाकरण लेने पड़ते हैं। मेडिकल फाइल रखना भी एक चैलेंज, कोई टीका मिस ना हो जाए..जिस डॉक्टर से लगवा रहे हैं, उसके पास जाएं या कोई नया डॉक्टर प्रयास करें।
बच्चों का पालन-पोषण एक बड़ी चुनौती है, आमतौर पर दादा-दादी,नाना-नानी कोई जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते हैं। पुराने गाने गाते रहेंगे, हमारे जमाने में तो ये था, ऐसा था।आजकल माता-पिता का पूरा समय दादा-दादी, नाना-नानी को कैसे भी अनुरोध करके अपना पास बुलाना होता है. दादा-दादी भी अपनी सुविधा पर आते हैं और ज्यादा मेहमान की तरह ही आते हैं और 10-15 दिन में शहर घूम कर, थोड़ी बहुत औपचारिकता करके चले जाते हैं। यह उनकी गलती नहीं है... यह टूटे सामाजिक रिश्तों की गलती है, साझा जिम्मेदारी की कमी है, सामुदायिक बंधन गायब है, समूह एकजुटता खत्म हो गई है। शहरी जीवन में किसी सहायता की तलाश,आपा धापी भागमभाग, बच्चों को स्कूल छोड़ना, बच्चों को रिश्तेदारों-दोस्तों और आस-पड़ोस से बचाना- टोटल रिस्क सोसाइटी।
हर कदम पर जान जोखिम में है, शहरी सपने और शहरी जीवन ने माता-पिता के जीवन को नरक बना दिया है। अब बच्चा अपना आप स्कूल नहीं जाता है, माता-पिता को बच्चे को छोड़ना होगा या स्कूल बस की व्यवस्था करनी होगी। स्कूल गया तो स्कूल बस वाला बस ठीक से चलाये, स्कूल में कोई छेड़छाड़ ना कर दे। चूँकि शहरी जीवन ने शहरी आकांक्षाएँ भी प्रदान की हैं, इसलिए छात्रों को पढ़ाने और यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि होमवर्क ठीक से किया जा रहा है। पहले किसान का बच्चा कितना भी पढ़ लेता या नहीं पढ़ता, फिर भी किसान ही होता। आज तो करियर आकांक्षाओं ने बच्चों को पहले दिन से ही पढ़ाई में झोंक दिया है और उसमें मां बाप भी लगे हुए हैं।
अब सब कुछ अकेले ही करना है। संयुक्त परिवार के विशेषाधिकार अब नहीं हैं, गांव वाली सुरक्षा की भावना नहीं है। जिनके पास घर नहीं है वो आपस में घर लेने के लिए लड़ाई कर रहे हैं। जिनके पास छोटा घर है वो बड़े घर के लिए लड़ाई कर रहे हैं। चूँकि विस्तारित परिवार से कोई समर्थन नहीं है तो घर में रोज ही संघर्ष होना ही है। घर मकान खाना पीना पढ़ाई दवाई सुरक्षा सुरक्षा सबके लिए मां बाप परेशान हैं अकेले ही,कोई सपोर्ट सिस्टम नहीं।
पहले ये सब समस्याएं नहीं थीं, अब माता-पिता हमेशा पैनिक मोड में रहते हैं। तनावग्रस्त, उदास और नकली ख़ुशी। ऐसे थके हुए और तनावग्रस्त माता-पिता समाज को एक तनावग्रस्त बच्चे को ही देंगे। कुल मिलाकर पिछली पीढ़ियों के माता-पिता ने अपने बच्चों के लिए सबसे अच्छा किया होगा, लेकिन बदलते समाज और तेजी से शहरीकरण को देखते हुए आज के माँ बाप के पास जिम्मेदारी बहुत ज्यादा हैं और पुराने माता-पिता ने आज के माँ बाप का 10 प्रतिशत ऊर्जा भी बच्चे के पालन-पोषण में नहीं लगाई होगी।
अब ये आपके ऊपर है कि आप इसे कैसे देखते हैं? इसको चाहे आप समाज में हो रहे समग्र नैतिक पतन कहें, शहरीकरण के दुष्परिणाम कहें, भौतिकवाद की चरम सीमा कहें या एकल परिवार प्रणाली के नुकसान कहें।
@ अंजनी कुमार पांडेय

30/08/2023
This day 30-08-2010 ....Completed 13 years in the service of Nation....

28/08/2023
पीछे मुड़कर देखने और यह कहने का कोई फायदा नहीं है, "मुझे अलग होना चाहिए था।" किसी भी क्षण, हम जैसे हैं वैसे ही हैं, और हम वही देखते हैं जो हम देखने में सक्षम हैं.... हम संपूर्ण बने रहने के लिए नहीं आए हैं। हम वृक्षों की तरह अपने पुराने पत्तों को खोने के लिए आये हैं, और वसंत आने पर वृक्षों पर फिर से नए पत्ते पाने के लिए....

27/08/2023
एक दिन मैं जागा और एक आनंददायक शांति से भर गया। मैंने इस पर चिंतन किया और पाया कि जब सामान्य या भौतिक स्तर से परे अस्तित्व या अनुभव की बात आती है तो मेरे अंदर दो चीजें होती हैं... एक तो अनुभव होता है शांतिपूर्ण और आनंदमय शून्यता और दूसरा अनुभव होता है अलौकिक रचनात्मकता के इस ईश्वरीय कार्य को महसूस करना ....
हर किसी का हृदय हमेशा सृजन करता है और कभी शांत नहीं होता... वह एक पागल सागर की तरह है, वह सृजन करना बंद नहीं कर सकता, वह बेचैन है, आवेगी है, अद्भुत है और बहुत बेहतरीन भी है...

14/08/2023
मन बैरागी, तन अनुरागी, क़दम-क़दम दुश्वारी है
जीवन जीना सहल न जानो, बहुत बड़ी फ़नकारी है
औरों जैसे होकर भी हम बाइज़्ज़त हैं बस्ती में
कुछ लोगों का सीधापन है, कुछ अपनी अय्यारी है

13/08/2023
बीतता हुआ दिन कहता है
अँधेरे के उस पार उजाला है
शायद चिड़िया भी गीत गायेगी
फिर ये उदासी कैसी
शायद सब भला हो जायेगा....
सुबह के आकाश की बात सोचते हुए
सपनों से मन को सजाते हुए
यह रात कट जायेगी
शायद इन अँधेरों का भी अंत है
लगता है किनारों तक पहुंच गया हूं....
ये रात भी ख़त्म हो जाएगी
सुख का ज्वार मुझे बहा ले जाएगा
जुगुनुओं की रोशनी में
अपना स्वर्ग सजाते हुए रात बिता दूंगा
शायद सब भला हो जायेगा....
- अंजनी कुमार पांडेय

07/08/2023
पहचानो धरती करवट बदला करती है,
देखो कि तुम्हारे पाँव तले भी धरती है....

06/08/2023
और जीवन से भरे इंसानों को देखकर
स्वयं को इतना विस्तारित मानने लगता हूँ कि
हर ओर ख़ुद को देख पाता हूँ ....

05/08/2023
जिसे भी आप प्यार करते हैं वह शायद खो जाएगा, लेकिन अंत में, प्यार दूसरे तरीके से वापस आएगा... परिवर्तन को गले लगाएं, यह अपरिहार्य है... परिवर्तन दर्दनाक हो सकता है, लेकिन इसे दर्द से आश्चर्य और प्यार में बदला जा सकता है... यह हम पर निर्भर है कि हम सचेत रूप से ऐसा करने के तरीकों के बारे में सोचें...
- फ्रांज काफ्का

26/07/2023
बदलते शहर और बदलते घर...
नौकरी और जीवनयापन के लिए मैं शहरों और महानगरों में रहने को बाध्य हूं... मैं शहर में रहता हूं लेकिन देहाती स्वभाव ही मेरी जीवनशैली है....इसलिये हमेशा शहर की सीमाओं पर रहना मेरी आदत रही है... मैं हमेशा वहीं रहना पसंद करता हूं जहां शहर ख़त्म होता है और गांव शुरू होते हैं... अभी तक जहां जहां भी रहा हूं भगवान की दया से ऐसा माहौल रहने को हमेशा मिला है... यह लखनऊ है, गोमती के तट, हरित,स्वच्छ, प्रदूषणमुक्त लखनऊ... इसके सामने ही मेरा नया आशियाना है...मेरे नये घर की बालकनी से ऐसा दिखता है लखनऊ शहर...

23/07/2023
मेरा एक और जीवन है
उसमें मेरे प्रिय हैं, मेरे हितैषी हैं, मेरे गुरुजन हैं
उसमें कोई मेरा अनन्यतम भी है
पर मेरा एक और जीवन है
जिसमें मैं अकेला हूँ
जिस नगर के गलियारों, फुटपाथ, मैदानों में घूमा हूँ
हँसा खेला हूँ
उसके अनेक हैं नागर, सेठ, म्युनिस्पलम कमिश्नर, नेता
और सैलानी, शतरंजबाज और आवारे
पर मैं इस हाहाहूती नगरी में अकेला हूँ।
देह पर जो लता सी लिपटी
आँखों में जिसनें कामना से निहारा
दुख में जो साथ आये
अपने वक्त पर जिन्होंने पुकारा
जिनके विश्वास पर वचन दिये, पालन किया
जिनका अंतरंग हो कर उनके किसी भी क्षण में मैं जिया
वे सब सुहृद है, सर्वत्र हैं, सर्वदा हैं
पर मैं अकेला हूँ।
सारे संसार में फैल जायेगा एक दिन मेरा संसार
सभी मुझे करेंगे-दो चार को छोड़-कभी न कभी प्यार
मेरे सृजन, कर्म-कर्तव्य, मेरे आश्वासन, मेरी स्थापनायें
और मेरे उपार्जन, दान-व्यय, मेरे उधार
एक दिन मेरे जीवन को छा लेंगे- ये मेरे महत्व।
डूब जायेगा तंत्रीनाद कवित्त रस में, राग में रंग में
मेरा यह ममत्व
जिससे मैं जीवित हूँ।
मुझ परितप्त को तब आ कर वरेगी मृत्यु - मैं प्रतिकृत हूँ।
पर मैं फिर भी जियुँगा
इसी नगरी में रहूँगा
रूखी रोटी खाउँगा और ठंड़ा पानी पियूँगा
क्योंकि मेरा एक और जीवन है और उसमें मैं अकेला हूँ।
- रघुवीर सहाय

12/07/2023
पुरानी फ़ाइलों के समायोजन के दौरान मिली ज़िंदगी की एक अमूल्य धरोहर...
An invaluable asset of life...
Remember Aspirants Mains is the key to UPSC Success...

07/07/2023
बीतता हुआ दिन कहता है
अँधेरे के उस पार उजाला है
शायद चिड़िया भी गीत गायेगी
फिर ये उदासी कैसी
शायद सब भला हो जायेगा....
सुबह के आकाश की बात सोचते हुए
सपनों से मन को सजाते हुए
यह रात कट जायेगी
शायद इन अँधेरों का भी अंत है
लगता है किनारों तक पहुंच गया हूं....
ये रात भी ख़त्म हो जाएगी
सुख का ज्वार मुझे बहा ले जाएगा
जुगुनुओं की रोशनी में
अपना स्वर्ग सजाते हुए रात बिता दूंगा
शायद सब भला हो जायेगा....

05/07/2023
कठिनाइयाँ रहेंगी, कष्ट रहेगा, परेशानियाँ रहेंगी, समस्याएं रहेंगी... जब मन हमारा कमजोर होता है, तो परिस्थितियाँ हमारे लिए समस्या का रूप ले लेती हैं, जब मन हमारा स्थिर होता है तो परिस्थितियाँ हमारे लिए चुनौती का रूप ले लेती हैं, लेकिन जब मन हमारा सशक्त होता है तो परिस्थितियाँ हमारे लिए अवसर का रूप ले लेती हैं....

11/06/2023
मेरा एक और जीवन है
उसमें मेरे प्रिय हैं, मेरे हितैषी हैं, मेरे गुरुजन हैं
उसमें कोई मेरा अनन्यतम भी है
पर मेरा एक और जीवन है
जिसमें मैं अकेला हूँ
जिस नगर के गलियारों, फुटपाथ, मैदानों में घूमा हूँ
हँसा खेला हूँ
उसके अनेक हैं नागर, सेठ, म्युनिस्पलम कमिश्नर, नेता
और सैलानी, शतरंजबाज और आवारे
पर मैं इस हाहाहूती नगरी में अकेला हूँ।
देह पर जो लता सी लिपटी
आँखों में जिसनें कामना से निहारा
दुख में जो साथ आये
अपने वक्त पर जिन्होंने पुकारा
जिनके विश्वास पर वचन दिये, पालन किया
जिनका अंतरंग हो कर उनके किसी भी क्षण में मैं जिया
वे सब सुहृद है, सर्वत्र हैं, सर्वदा हैं
पर मैं अकेला हूँ।
सारे संसार में फैल जायेगा एक दिन मेरा संसार
सभी मुझे करेंगे-दो चार को छोड़-कभी न कभी प्यार
मेरे सृजन, कर्म-कर्तव्य, मेरे आश्वासन, मेरी स्थापनायें
और मेरे उपार्जन, दान-व्यय, मेरे उधार
एक दिन मेरे जीवन को छा लेंगे- ये मेरे महत्व।
डूब जायेगा तंत्रीनाद कवित्त रस में, राग में रंग में
मेरा यह ममत्व
जिससे मैं जीवित हूँ।
मुझ परितप्त को तब आ कर वरेगी मृत्यु - मैं प्रतिकृत हूँ।
पर मैं फिर भी जियुँगा
इसी नगरी में रहूँगा
रूखी रोटी खाउँगा और ठंड़ा पानी पियूँगा
क्योंकि मेरा एक और जीवन है और उसमें मैं अकेला हूँ।
- रघुवीर सहाय
10/06/2023
आत्म-विकास के लिए भी स्थानांतरण, नई जगहें, नई चुनौतियों की जरूरत होती है। सुरक्षित माहौल से बाहर निकलना और अज्ञात में कूदना आत्म सुधार का सबसे अच्छा तरीका है। यह नई चीजें सीखने और एक अजीब दुनिया के अनुकूल होने की आपकी क्षमता का परीक्षण करता है...
नागपुर, पालघर, सोलापुर, पुणे, नागपुर, सूरत, लखनऊ ....

10/06/2023
जैसे शिव हैं वैसे ही शक्ति भी हैं। जैसे शक्ति हैं वैसे ही शिव भी हैं। जिस प्रकार चन्द्रमा के बिना चन्द्रमा प्रकाशित नहीं होता उसी प्रकार शिव भी शक्ति के बिना प्रकाशित नहीं होते हैं।
जिस प्रकार सूर्य के बिना प्रकाश नहीं होता है और न ही प्रकाश के बिना सूर्य होता है, उसी प्रकार शक्ति और शक्तिमान में भी परस्पर निर्भरता है। शिव के बिना कोई शक्ति नहीं हैं और शक्ति के बिना कोई शिव नहीं हैं।
सभी पुरुष शिव के समान हैं। सभी महिलाएं महेश्वरी के समान हैं। जैसे माता-पिता के बिना बालक का जन्म नहीं होता, वैसे ही शिव और शक्ति के बिना चर और अचल प्राणियों का जगत उत्पन्न नहीं होता है।
जगत में जो कुछ भी सुना जाता है वह उमा का रूप है और सुनने वाला त्रिशूलधारी शिव हैं। शिव की शक्ति सभी शब्दों को धारण करती हैं। चंद्र कलगी वाले स्वामी उनके सभी अर्थ रखते हैं।
.. जो कुछ भी महान, पवित्र, शुद्ध और शुभ है, वह शिव- शक्ति के तेज का विस्तार है....
Amitbhanu Pandey

04/06/2023
सूर्यास्त मे समा गयीं
सूर्योदय की सड़कें,
जिन पर चले हम
तमाम दिन सिर और सीना ताने...
- केदारनाथ अग्रवाल
29/05/2023
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ...

28/05/2023
जिंदगी ने कर लिया स्वीकार,
अब तो पथ यही है...
अब उभरते ज्वार का आवेग मद्धिम हो चला है,
एक हलका सा धुंधलका था कहीं, कम हो चला है,
यह शिला पिघले न पिघले, रास्ता नम हो चला है,
क्यों करूँ आकाश की मनुहार ,
अब तो पथ यही है...
क्या भरोसा, कांच का घट है, किसी दिन फूट जाए,
एक मामूली कहानी है, अधूरी छूट जाए,
एक समझौता हुआ था रौशनी से, टूट जाए,
आज हर नक्षत्र है अनुदार,
अब तो पथ यही है...
यह लड़ाई, जो की अपने आप से मैंने लड़ी है,
यह घुटन, यह यातना, केवल किताबों में पढ़ी है,
यह पहाड़ी पाँव क्या चढ़ते, इरादों ने चढ़ी है,
कल दरीचे ही बनेंगे द्वार,
अब तो पथ यही है...
- दुष्यंत कुमार

25/05/2023
ऐसा माना जाता है की जब किसी इंसान का अहंकार टूटता है तो उसके अंदर मौजूद परमात्विक तत्व उभरकर सामने आता हैं। उसके अंदर रमे हुए परमात्मा के दर्शन होते हैं। बस यह अहंकार का पर्दा ही उसे छुपाए रखता हैं....

25/05/2023
हम ने उसको इतना देखा जितना देखा जा सकता था
लेकिन फिर भी दो आँखों से कितना देखा जा सकता था

23/05/2023
ये घड़ियां, ये शामें, ये लमहें
जो मन पर कोहरे से जमे रहे
निर्मित होने के क्रम में
क्या इनका कोई अर्थ नहीं?
- धर्मवीर भारती

06/05/2023
UPSC Result... 6 May 2010...
होइहि सोइ जो राम रचि राखा...
कुछ भी निर्मित नहीं हुआ है और कुछ भी नष्ट नहीं हुआ है। उस अवस्था का अनुभव - जहाँ सब कुछ विद्यमान है - शिव है...शिव शक्ति हैं और शक्ति ही शिव हैं।
सबकुछ कुछ भी नहीं है। कुछ भी नहीं सब कुछ है...
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Anjani Kumar Pandey IRS
Ayushmann Khurrana
Anjani Kumar Pandey IRS
- अंजनी कुमार पांडेय (इलाहाबादी ब्लूज़)
Anjani Kumar Pandey IRS
ये किताब एक शहर बचाती है, और उसी के साथ बच जाती है एक घटना जो हम सब के जीवन में घटती है। वो घटना है कॉलेज, और कुछ लोगों के लिए सिविल परीक्षा की तैयारी। पूरी किताब किसी कॉलेज के मित्र से बातचीत सी अपनी लगती है।
सबसे अच्छी बात ये है कि ये किताब अब अमेज़न के बेस्टसेलर लिस्ट में है।आधुनिक हिंदी साहित्य वापिस अपनी जगह बना रहा है। लोगों द्वारा पढ़ा-पढ़ाया जा रहा है। ऐसी क़िताबों को श्रेय जाता है, जो आम पाठक को अपनी तरफ खींच रही हैं।
ये किताब पढ़िए, सिर्फ इसलिए नहीं कि एक वरिष्ठ IRS अधिकारी द्वारा लिखी। और सिविल सेवा में आये अधिकारियों की किताबों का अलग चार्म होता है।
पर इसलिए क्योंकि अच्छा साहित्य भी बचाया जाना चाहिए। साहित्य बस पाठक बचा सकते हैं, लेखक बस कोशिश कर सकता है।
अकादमी आने के बाद ये पहली हिंदी की किताब थी, जो इस परेशानी भरे वक़्त में साथी बनी।
Anjani Kumar Pandey IRS सर का शुक्रिया इस किताब के लिए। और हिंदी साहित्य में आगे की यात्रा के लिए शुभकामनाएं ।।
(किताब लिंक : https://www.amazon.in/dp/9387464865/ref=cm_sw_r_cp_apa_i_nKaIFbMN8E8KW )
हम हिन्दी दिवस मनाते तो है पर आज हिन्दी को मानने वाले कितने लोग है, कितने लोग है जो हिन्दी की गहराइयों को जानने में रुचि रखते है, अब आप सोचिये कि आज के समय मे कौन है जो अपने बच्चों को ABCD की जगह कखगघ पढ़ाता है, कौन है जो अपने बच्चे को One two three four के स्थान पर एक दो तीन चार पढ़ाता हो इसमें मैं खुद भी हूँ जो इस बात का बहाना देता हूँ कि आज के समय में सामाजिक मांग है अंग्रेजी तभी शायद हिंदी का महत्व जरूर थोड़ा कम हुआ है पर इसके अस्तित्व पर कोई चोट नही कर सकता जिसका कारण है इसकी "सरलता" ये हिंदी ही है जो इतनी विस्तृत होने के बावजूद सबको बड़ी आसानी से अपने आलिंगन में समा लेती है तभी तो आज सौ करोड़ से अधिक हिंदी भाषी है इस धरती पर जो गर्व का विषय है। पर फिर भी ऐसी ही बहुत सी सामान्य सामाजिक मजबूरियां है जिनके कारण हम हिन्दी से सम्बंधित तो है पर खास सम्बन्ध रहा नही अब हिन्दी से, पर फिर भी आज हिन्दी दिवस के दिन फेसबुक पर ढेरों बधाईयां देखकर खुशी मिलती है कि चलो किसी खास दिन पर ही सही हिन्दी को सम्मान तो मिल रहा है।
अब शायद समय की दरकार(अंग्रेजी) यही है
भले हिन्दी बस बुदबुदाहट में हो हमारी
पर हमारे अस्तित्व में तो हिंदी की हुंकार वही है
Anjani Kumar Pandey IRS Sir का एक लेख साझा कर रहा हूँ जो शायद इस समय की दरकार(अंग्रेजी) को कुछ चुनौती दे सके। हो सकता है कि लेख स्पष्ट न हो पर शीर्षक पर ध्यान दें।😊🙏
*बच्चों को मोबाइल नही,हिंदी की पुस्तकों से जोड़े*
हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं🙏
विकास
🙏
शुभकामनाएँ!