श्री सिद्ध बाबा योगी गुरु गोरक्ष नाथ जी

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श्री सिद्ध  बाबा  योगी  गुरु  गोरक्ष नाथ जी आदेश आदेश आदेश
ॐ शिव गोरक्ष:
जय श्री नाथ जी
🙏🙏🙏

26/12/2023
शुद्ध देसी खाना
24/12/2023

शुद्ध देसी खाना

ॐ शिव गोरक्ष:
24/12/2023

ॐ शिव गोरक्ष:

ॐ शिव गोरक्ष:देखो कितनी अच्छी रचना की हकितना सरल वर्णन किया है
24/12/2023

ॐ शिव गोरक्ष:
देखो कितनी अच्छी रचना की ह
कितना सरल वर्णन किया है

 #श्रीकृष्ण_का_देहत्याग यह दृश्य जब भी स्मरण होता है तब मेरी आंखें डबडबा जाती है। उस दृश्य का कुछ अंश आपके सामने है..!अप...
24/12/2023

#श्रीकृष्ण_का_देहत्याग
यह दृश्य जब भी स्मरण होता है तब मेरी आंखें डबडबा जाती है। उस दृश्य का कुछ अंश आपके सामने है..!

अपने अग्रज के महाप्रयाण को कृष्ण सह नहीं सके। वो जंगल में ही अश्वत्थ वृक्ष के नीचे तने के साथ अपनी भुजा को सिर के पीछे लगाये पीठ के सहारे अर्धशयन मुद्रा में वे बैठे हुए थे, बाँया पैर दांये घुटने पर रखे हुए अर्धनिमीलित नेत्रों से शून्य में देखते हुए से। बाँया चरण घुटने पर होने के कारण हवा में था जिसका तलवा प्रातःकाल के उदित होते सूर्य की रश्मियों में अपनी रक्ताभ छटा बिखेर रहा था।

प्रातः कालीन समीर भी कुछ सहमा सहमा व उदास सा था और अश्वत्थ वृक्ष के तने के सहारे से बैठे उस मोहक व्यक्तित्व के सुहावने गात्र को सहलाता सा, उन्हें सांत्वना देता सा बह रहा था।

उन्होंने ऊपर अश्वत्थ की ओर देखा और क्षितिज की ओर देखकर एक गहरी उसांस भरी।

केवल कुछ दिवस पूर्व ही तो वे घिरे थे परिवार से, कुटुंब से, समाज से, पूरे गण से.....और अब?

अब पूर्णतः एकाकी।

सारे आर्यावर्त की राजनैतिक, सामाजिक व आध्यात्मिक गतिविधियों के केंद्र में रहकर भी असंपृक्त अनासक्त रहे पर चारों ओर घेरे खड़े कुटुंब व परिवारी जनों की अनंत स्वार्थकामनाओं की अपेक्षाओं में बाधक हो निपट अकेले होते चले गये क्योंकि वे अधर्म का साथ नहीं दे सकते थे। इसीलिये अपनी आंखों के सामने पुत्र, पौत्रादि की मृत्यु देखकर भी अविचलित रह सके।

परंतु फिर भी उनका निर्मोही मन अग्रज के महाप्रयाण को ना सह सका।

अपने इस अग्रज का स्नेह उन्हें मातृक्षीर की तरह ही शैशव से प्राप्त हुआ और वह जीवन भर अटूट गांठ की तरह रहा। इस हठी परंतु स्नेही अग्रज का क्रोध, क्षोभ जैसे आवेग और मदिरा, द्यूत आदि दुर्व्यसन भी उनके प्रति प्रेम को कम नहीं कर सके और आज जब वे भी मुँह मोड़कर सदैव के लिये इस मृत्य संसार को छोड़कर चले गये तो जाने यह कैसी जड़तापूर्ण स्तब्धता छा गयी है और रह रहकर उनका मन अतीत में लौट रहा था कि तभी...

सर्रर्रर्रर....

उनके योद्धा मस्तिष्क में एक महीन पर जानी पहचानी आवाज गूंजी और पीड़ा की एक तीखी रेखा पैरों के तलवे से मस्तिष्क तक खिंच गई।

उन्होंने पैर की ओर देखा, तलवे को भेदता हुए बाण का फलक पैर के दूसरी ओर निकल चुका था।

इस आकस्मिक शर प्रहार ने उन्हें भाव जगत से बाहर ला दिया।

"पीड़ा शरीर का सहज धर्म है पर आत्मा का नहीं।" उनके चेहरे पर एक स्मित उभरी। स्मित, जिसके सम्मोहन में रहा आर्यावर्त पूरे सौ वर्षों तक।

"मुझे क्षमा कर दें आर्य, आपके रक्तिम तलवे को वन्य पशु का मुख समझ बाण चला बैठा।" एक व्याध व्याकुल होकर घुटनों के बल बैठा गिड़गिड़ा रहा था।

"उठो, तुमने कोई अपराध नहीं किया, जो कुछ हुआ वह भ्रमवश हुआ"

"नहीं प्रभु अपने इस पातक के लिये स्वयं को कैसे क्षमा कर सकूँगा?"

"कोई अपराधबोध अपने मन में मत रखो। तुम्हारे प्रति हुए मेरे किस जन्म के किस कर्म का यह परिणाम है तुम नहीं जानते हो।" --व्याध के कंधे को थपथपाते हुये उनके चेहरे पर एक 'रहस्यमय मुस्कुराहट' खेल गई।

"अब तुम जाओ, तुम्हें शांति प्राप्त हो।"

व्याध बारंबार धरती पर सिर टेकता हुआ उठा और भारी कदमों से चल दिया। चलते चलते वह मुड़ मुड़कर पीछे देखता जाता था। पर अंततः व्याध परिदृश्य से ओझल हो ही गया।

अब वे पुनः अपनी स्मृतियों के साथ अकेले थे।

उनके स्मृति पटल पर दृश्य और ध्वनियाँ लहरों की तरह आ जा रहे थे और परस्पर टकराकर कोलाहल का एक भंवर बना रहे थे। धीरे धीरे वे स्वर स्पष्ट होने लगे।

-- एक टूटता हुआ स्वर प्रभास के रक्तप्लावित क्षेत्र से मृत्युमुख में जाते रक्तरंजित पुत्र का उठा--"पिताजी!"

--"तुम चाहते तो यह युद्ध रोक सकते थे अतः इस पाप के भागी तुम भी हो।"--निर्मम आरोप की यह स्त्रीध्वनि उठी हस्तिनापुर के राजमहल से।

--"भैया, तुम्हारे होते भी मेरे निःशस्त्र पुत्र की हत्या इन अधर्मियों ने कैसे कर दी?" हिचकियों में डूबा अपनी लाडली बहन का रुदन वे स्पष्ट सुन रहे थे।

--फिर एक और स्त्री का उलाहना भरा स्वर आया हस्तिनापुर से-- "तुम जैसे सखा के होते हुए भी सार्वजनिक सभा में इस तरह मेरा अपमान हुआ। कैसे?"

--और.........इन सबसे अलग दूर, बहुत दूर सुदूर कालखंड से यात्रा करते हुए एक प्रौढ़ पुरुष के कातर मुख व भरे गले से निकली आवाज गूंजी --"लल्ला, अपना ध्यान रखना।"

इस आवाज ने उन्हें हमेशा की तरह भावाकुल बना दिया। एक पिता की आवाज जो अपने पुत्र को सदैव के लिए स्वयं से दूर जाता देख रहा था।

शताब्दी भर के इस जीवनअंतराल में यह छोटा सा वाक्य उनके मन पर एक बोझ बनकर रहा और वे कभी उससे मुक्त ना हो सके और ना वह प्रौढ़ चेहरा जिसे वह 'बाबा' कहकर पुकारते थे।

उन डबडबाई हुई आंखों व कातर मुख के स्मृति मात्र से शरीर की रोमावलियाँ खड़ी हो गईं।

अभी वे संभल भी ना पाये थे कि तभी तुरंत ही गूंजी वात्सल्य में डूबी वह पुकार जिसकी उपेक्षा करने का सामर्थ्य उनके निर्मोही अनासक्त मन में भी नहीं था।

"तू कहाँ छुपा है रे? क्यों अपनी मैया को इतना तंग करता है??"

"मैं यहाँ हूँ मैया", वे होंठों में ही बुदबुदा पड़े। साथ ही उनके अर्धनिमीलित नेत्रों पर पलकें ढल गयीं और बंद कमल नयनों से छलक पड़े दो अश्रुबिंदु।

साक्षात ईश्वर कहे जाने वाले इस दैवी व्यक्तित्व को भी माँ की स्मृति में विकल देखने के लिये समय जैसे उन अपूर्व क्षणों में रुक गया।

वृक्ष, लताएं, प्रवृत्ति से विपरीत शांत बैठे शशक, बड़ी बड़ी भोली आंखों से उनके चेहरे की ओर अबूझ भाव से ताकते हिरण और व्याकुलता में गर्दन हिलाते मयूर, सभी शांत स्तब्ध थे।

अंततः उनके कानों में गूंजी एक चिर परिचित फुसफुसाहट जो उनके स्मृति में आज भी एक शताब्दी बाद भी ज्यों की त्यों सुरक्षित थी, सदैव उनकी शक्ति बनकर।

"तुम सिर्फ मेरे हो।" उनकी पीठ पर आरोहित एक गर्वीली गोपिका की धीमी सी अस्फुट ध्वनि गूंजी और स्मृतियों में रची बसीं तैर गयीं वे बड़ी बड़ी आंखें। उन आंखों में अश्रु नहीं थे, वहाँ तो थी एक अनंत प्रतीक्षा जो उनके बिछड़ने पर उपजी थी।

वे फिर कभी उन आंखों को देख नहीं सके जिसमें स्वयं के प्रतिबिंब को देखकर वे मुग्ध हो उठते थे।

विकल हो उनकी आंखें खुल गईं।

वो उनके सामने खड़ी थी।

"तुम? यहाँ??"

"मुझे और कहाँ होना चाहिये? वह खिलखिलाकर हँस दी।

"तुम कहाँ थीं अब तक? पूरे एक युग बाद देख सका हूँ तुम्हें, तुम्हारी हँसी को....." उनकी आंखें पुनः भर आईं।

मुस्कुराती हुई वह उनके पास आई।

"हम अलग थे ही कब? तुम्हें हुआ क्या है?? पहचानो स्वयं को।" वह उनके कानों में फुसफुसाई और फिर खिलखिलाते हुए उनके मस्तक पर एक चुम्बन अंकित कर दिया।

उनके मस्तिष्क को जैसे झटका लगा और भ्रूमध्य में हलचल महसूस होने लगी। उनका ध्यान केंद्रित होना शुरू हो गया।

बंद नेत्रों में भ्रूमध्य पर प्रकाशबिंदु प्रतीत होने लगे जिनकी परिधि क्रमशः बढ़ने लगी। बढ़ते बढ़ते इस प्रकाश ने जैसे उनके पूरे अस्तित्व को घेर लिया था।

उनके चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश था और वे स्वयं उस प्रकाश से अभिन्न होकर प्रकाश कणों में उर्मि रूप में थे।

अब वे समस्त सृष्टि का केंद्र थे और उसे गति प्रदान कर रहे थे।

न उनका कोई आदि था ना कोई अंत, वे अनंत थे जिसमें सिकताकणों की भांति अनंत ब्रह्मांड प्रतिक्षण बुलबुलों की भांति बन मिट रहे थे।

पर वह अभी भी उनके सामने थी, मुस्कुराती हुई।

उसने अपना हाथ आमंत्रण मुद्रा में बढ़ा दिया। वे उठ खड़े हुए और उस हाथ को थाम लिया। हाथों में कुछ छिपा हुआ था।

ओह यह तो उनकी वही बांसुरी थी जिसे वह अपनी स्मृति के रूप में छोड़ आये थे। उन्होंने प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा और उसने मुस्कुराकर आंखों ही आंखों में मौन स्वीकृति दी।

पूरे सौ वर्ष पश्चात उन्होंने उस बिछुड़ी बाँसुरी को अपने अधरों से लगाया।

भुवनमोहिनी स्वर गूँज उठे।

उसने उनके कंधे पर सिर रख दिया और उस स्वर में डूब गई।

धुन की तीव्रता के साथ साथ प्रकाश की उर्मियाँ बढ़ने लगीं। दोंनों उस प्रकाश में विलीन होते जा रहे थे और एक रूप भी। अंततः दोनों अभिन्न हो गये और प्रकाश ने उन्हें स्वयं में विलीन कर लिया।

अश्वत्थ वृक्ष के तने से टिका सिर एक ओर कंधे पर ढुलक गया और ठीक उसी समय उधर सुदूर बरसाने में एक स्त्री की सांसें भी उन्हीं पलों में थम जाती

आदेश आदेश आदेश
जय श्री नाथ जी

्री_कृष्ण #महाभारत #द्वारका

12 के महंत श्री कृष्ण नाथ जीआदेश आदेश आदेश🙏🙏🙏🙏
23/12/2023

12 के महंत श्री कृष्ण नाथ जी
आदेश आदेश आदेश
🙏🙏🙏🙏

आदेश आदेश आदेशजय श्री नाथ जी🙏🙏🙏
23/12/2023

आदेश आदेश आदेश
जय श्री नाथ जी
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जय शनि देव
23/12/2023

जय शनि देव

🕉️
23/12/2023

🕉️

आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
23/12/2023

आप सभी सादर आमंत्रित हैं।

आसान कहाँ है किसान का जीवन
22/12/2023

आसान कहाँ है किसान का जीवन

आदेश आदेश आदेश    ॐ शिव गोरक्ष:
22/12/2023

आदेश आदेश आदेश
ॐ शिव गोरक्ष:

जोधपुर नरेश राव जोधा जी को चमत्कार दिखाया नाथजी ने #सिध्द_चिड़िया_नाथजी चौरासी नाथ  सिद्धों में  श्री आरम्भय नाथ जी महारा...
21/12/2023

जोधपुर नरेश राव जोधा जी
को चमत्कार दिखाया नाथजी ने

#सिध्द_चिड़िया_नाथजी
चौरासी नाथ सिद्धों में श्री आरम्भय नाथ जी महाराज ही (सिद्ध चिड़ियानाथ जी) है।राजस्थान के जोधपुर शहर से दक्षिण पूर्व दिशा में 45 किलोमीटर दूर मीठड़ी नदी किनारे एक धार्मिक ,ऐतिहासिक गांव (नगरी)पालासनी है। यहां सरोवर के तट पर चिडियानाथ जी का भव्य मठ स्थापित है।आज से लगभग 560 वर्ष पूर्व श्री चिड़िया नाथ जी ने यहां जीवित समाधी ली थी।जिसका निर्माण राव जोधाजी जोधपुर नरेश ने करवाया था।यहां श्री लक्कड़नाथ जी महाराज की जीवित समाधी,यहां गुलाब नाथजी महाराज की जीवित समाधी जिसके चारों ओरण (भूमि)है यहां प्रतिवर्ष होली के 4 दिन बाद मेला लगता है।मारवाड़ में चिडियानाथ जी को लोकदेवता के रूप में माना जाता है।1459 ई.में मारवाड़ नरेश राव जोधाजी नेअपनी राजधानी मंडोर से 5 किलोमीटर दूर चिड़िया नाथ पहाड़ी(चिड़िया टूंक)पर मेहरानगढ़ दुर्ग बनवाया था।तब चिडियानाथजी की धूनी नीव के बीचों बीच आगई।जब धूनी व गुफा को हटाने का आदेश हुआ।तब चिडियानाथजी ने अपनी झोली में धूनी के जलते हुए अंगारे भर कर स्थान छोड़ कर चलते चलते पालासनी गांव में जा कर रुके।वहां धूनी स्थापित की।तथा यहीं जीवित समाधी लेली।वर्तमान में 27वें आईसजी महाराज(मठाधीश) श्री कैलाशनाथ जी महाराज हैं।आरम्भयनाथ जी (चिड़िया नाथजी)ने पहला आसन ईडवा,नागौर में स्थापित किया था।चिड़िया नाथ जी ईडवा से निकल कर जंगलों में भृमण करने लगे।जंगल में एक बालिका ने जल पिलाया।बाबाजी ने पानी पी कर आशीर्वाद दिया।कहा तुम करणी देवी के नाम से तेरी पूजा होगी।जो करणीमाता के नाम से पूजा होती है।वर्तमान में देशनोक में करणीमाता का जगत प्रसिद्ध मंदिर है।जहां चूहे अधिक मात्रा में रहते है।इन्होंने ने एक लोहारू में धूनी स्थापित कीऔर घोर तपस्या की। वहां से चल कर मेहरान गढ़ धूनी स्थापित की और गुफा बनाई। राव जोधा द्वारा यहां किल्ला बनावाने से पूर्व यहां से पालासनी चले गए।इनकी धुनि के पास दिनको दीवार की चुनाई होती और रात को ढह जाती ।राव जोधाजी की भक्ति से प्रश्न होकर दीवार बनाने की इजाजत दी तब ही दीवार बन सकी। बीजांणी गांव की सूखी नाडी में जल प्रकट कर दिया।सूखे केर की लकड़ी को छाया के लिए जमीन में रोपी वह हरी हो गई। आदि अनेक चमत्कार स्वतः ही प्रकट हो जाते थे। उन्होने राजा को अमर वचन सुनाए । कहा-यह मेरे अमर वचन है कि- (1)जब तक मेरा झरना झरता ररहेगा तब तक तेरा राज रहेगा।(2)जब तक गढ़ पर चील मंडराती रहेगी तब तक तेरा शासन कायम रहेगा।(3)हाथ से दिया तेरा राज जाएगा।( 4)पुण्य की जड़ पियाल (पाताल)में है ,पुण्य पालते ही रहने में भलाई है। (5)नीति से राज करोगे तो 900 साल राज करोगे।अनीति से राज करोगे तो 500 साल में राज चला जायेगा।नहीं तो हाथ से दिया हुआ राज चला जायेगा।। राव जोधा जी नाथजी से क्षमा प्रार्थना करने आ रहे थे। पर उनके पहुंचने से कुछ समय पहले ,सिद्ध चिड़िया नाथजी उठ खड़े हुए और उत्तर दिशा में सात कदम चल कर धरती माता को प्रणाम करके बोले-" धरती को यूँ धीरपी आंगल खोलो आप,अमर रहसि उपमा योगी लेवे समाध " ऐसा कहते ही भूमि माता ने जगह दी,बाबा जी अंदर प्रवेश करते ही भूमाता अपने आप में सिमट गई।राव जोधा पहुंचे तो देखा गुरु देव यहां नहीं है।लोगों से पूछा गुरु देव कहां है। लोग बोले अभी अभी गुरुदेव धरती खुली और उसमें समा गए।तभी से चिड़िया नाथजी को मारवाड़ के राजगुरु का मान प्रदान किया। तब से राज गुरु व आयस जी महाराज की उपाधि नाथ महन्तों को प्रदान की जाने लगी।।
आदेश आदेश
#नाथजी की वाणी

🌺🕉️ आदेश आदेश संतो हरी हर 🕉️🌺

भोजन नहीं यह हिंसा है हत्या है एक जीव की एक आत्मा की !!
21/12/2023

भोजन नहीं यह हिंसा है हत्या है एक जीव की एक आत्मा की !!

भीष्म ने युधिष्ठिर को दिया था यह रहस्यमयी ज्ञान, आपने जान लिया तो आप कुछ सोचने पर विवश हो जायेंगे!!!!!!!!भीष्म और युद्धि...
21/12/2023

भीष्म ने युधिष्ठिर को दिया था यह रहस्यमयी ज्ञान, आपने जान लिया तो आप कुछ सोचने पर विवश हो जायेंगे!!!!!!!!

भीष्म और युद्धिष्ठिर संवाद हमें भीष्मस्वर्गारोहण पर्व में मिलता है, जिसे भीष्म नीति के नाम से जाना जाता है। भीष्म पितामह शर शय्या पर 58 दिन तक रहे। उसके बाद उन्होंने शरीर त्याग दिया तब माघ महीने का शुक्ल पक्ष था। इन 58 दिनों में भीष्म के समक्ष सभी संध्या को एकत्रित होते थे और उनसे ज्ञान की बाते सुनते थे। भीष्म ने इस दौरान राजधर्म, मोक्षधर्म और आपद्धर्म आदि का मूल्यवान उपदेश बड़े विस्तार के साथ दिया। इस उपदेश को सुनने से युधिष्ठिर के मन से ग्लानि और पश्‍चाताप दूर हो जाता है।

जब पितामह भीष्म बाणों की शैया पर लेते हुए थे तब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा:- 'तुम्हारे मन में अशान्ति है। तुम भीष्मजी के पास जाओ और अपनी कठिनाई का वर्णन करो। धर्म का ज्ञान रखने वालों में भीष्म सबसे श्रेष्ठ हैं।

जब वे नहीं रहेंगे तो संसार ऐसा तमोमय हो जाएगा, जैसे चन्द्रमा के न रहने से रात्रि हो जाती है। भीष्म जीवन और मृत्यु के बीच लटक रहे हैं। जाओ, उनसे जो कुछ पूछना है, पूछ लो।' युधिष्ठिर, कृष्ण, कृप और पाण्डवों के साथ कुरुक्षेत्र में पहुंचे। मृत्यु शय्या पर पड़े हुए भीष्म ने जो उपदेश उस समय दिए, उनमें से कुछ नीचे दिए जा रहे हैं-

1. सत्य धर्म सब धर्मों से उत्तम धर्म है। 'सत्य' ही सनातन धर्म है। तप और योग, सत्य से ही उत्पन्न होते हैं। शेष सब धर्म, सत्य के अंतर्गत ही हैं।

2. सत्य बोलना, सब प्राणियों को एक जैसा समझना, इन्द्रियों को वश में रखना, ईर्ष्या द्वेष से बचे रहना क्षमा, शील, लज्जा, दूसरों को कष्ट न देना, दुष्कर्मों से पृथक रहना, ईश्वर भक्ति, मन की पवित्रता, साहस, विद्या-यह तेरह सत्य धर्म के लक्षण हैं। वेद सत्य का ही उपदेश करते हैं। सहस्रों अश्वमेध यज्ञों के समान सत्य का फल होता है।

3. सत्य ब्रह्म है, सत्य तप है, सत्य से मनुष्य स्वर्ग को जाता है। झूठ अन्धकार की तरह है। अन्धकार में रहने से मनुष्य नीचे गिरता है। स्वर्ग को प्रकाश और नरक को अन्धकार कहा है।

4. ऐसे वचन बोलो जो, दूसरों को प्यारे लगें। दूसरों को बुरा भला कहना, दूसरों की निन्दा करना, बुरे वचन बोलना, यह सब त्यागने के योग्य हैं। दूसरों का अपमान करना, अहंकार और दम्भ, यह अवगुण है।

5. इस लोक में जो सुख कामनाओं को पूरा करने से मिलता है और जो सुख परलोक में मिलता है, वह उस सुख का सोलहवां हिस्सा भी नहीं है जो कामनाओं से मुक्त होने पर मिलता है।

6. जब मनुष्य अपनी वासनाओं को अपने अन्दर खींच लेता है, जैसे कछुआ अपने सब अंग भीतर को खींच लेता है, तो आत्मा की ज्योति और महत्ता दिखाई देती है।

7. मृत्यु और अमृतत्व- दोनों मनुष्य के अपने अधीन हैं। मोह का फल मृत्यु और सत्य का फल अमृतत्व है।

8. संसार को बुढ़ापे ने हर ओर से घेरा है। मृत्यु का प्रहार उस पर हो रहा है। दिन जाता है, रात बीतती है। तुम जागते क्यों नहीं? अब भी उठो। समय व्यर्थ न जाने दो। अपने कल्याण के लिए कुछ कर लो। तुम्हारे काम अभी समाप्त नहीं होते कि मृत्यु घसीट ले जाती है।

9. स्वयं अपनी इच्छा से निर्धनता का जीवन स्वीकार करना सुख का हेतु है। यह मनुष्य के लिए कल्याणकारी है। इससे मनुष्य क्लेशों से बच जाता है। इस पथ पर चलने से मनुष्य किसी को अपना शत्रु नहीं बनाता। यह मार्ग कठिन है, परन्तु भले पुरुषों के लिए सुगम है। जिस मनुष्य का जीवन पवित्र है और इसके अतिरिक्त उसकी कोई सम्पत्ति नहीं, उसके समान मुझे दूसरा दिखाई नहीं देता। मैंने तुला के एक पल्ले में ऐसी निर्धनता को रक्खा और दूसरे पल्ले में राज्य को। अकिंचनता का पल्ला भारी निकला। धनवान पुरुष तो सदा भयभीत रहता है, जैसे मृत्यु ने उसे अपने जबड़े में पकड़ रखा है।

10. त्याग के बिना कुछ प्राप्त नहीं होता। त्याग के बिना परम आदर्श की सिद्धि नहीं होती। त्याग के बिना मनुष्य भय से मुक्त नहीं हो सकता। त्याग की सहायता से मनुष्य को हर प्रकार का सुख प्राप्त हो जाता है।

11. वह पुरुष सुखी है, जो मन को साम्यावस्था में रखता है, जो व्यर्थ चिन्ता नहीं करता। जो सत्य बोलता है। जो सांसारिक पदार्थों के मोह में फंसता नहीं, जिसे किसी काम के करने की विशेष चेष्टा नहीं होती।

12. जो मनुष्य व्यर्थ अपने आपको सन्तप्त करता है, वह अपने रूप रंग, अपनी सम्पत्ति, अपने जीवन और अपने धर्म को भी नष्ट कर देता है। जो पुरुष शोक से बचा रहता है, उसे सुख और आरोग्यता, दोनों प्राप्त हो जाते हैं।

13. सुख दो प्रकार के मनुष्यों को मिलता है। उनको जो सबसे अधिक मूर्ख हैं, दूसरे उनको जिन्होंने बुद्धि के प्रकाश में तत्व को देख लिया है। जो लोग बीच में लटक रहे हैं, वे दुखी रहते हैं।

14. श्रेष्ठ और सज्जन पुरुष का चिह्न यह है कि वह दूसरों को धनवान देख कर जलता नहीं। वह विद्वानों का सत्कार करता है और धर्म के सम्बन्ध में प्रत्येक स्थान से उपदेश सुनता है।

15.जो पुरुष अपने भविष्य पर अधिकार रखता है (अपना पथ आप निश्चित करता है, दूसरों की कठपुतली नहीं बनता) जो समयानुकूल तुरन्त विचार कर सकता है और उस पर आचरण करता है, वह पुरुष सुख को प्राप्त करता है। आलस्य मनुष्य का नाश कर देता है।

16. भोजन अकेले न खाये। धन कमाने का विचार करे तो किसी को साथ मिला ले। यात्रा भी अकेला न करे। जहां सब सोये हुए हों, वहां अकेला जागरण न करे।

17.जो पुरुष अपने आपको वश में करना चाहता है उसे लोभ और मोह से मुक्त होना चाहिए।

18. दम के समान कोई धर्म नहीं सुना गया है। दम क्या है? क्षमा, धृति, वैर-त्याग, समता, सत्य, सरलता, इन्द्रिय संयम, कर्म करने में उद्यत रहना, कोमल स्वभाव, लज्जा, बलवान चरित्र, प्रसन्नचित्त रहना, सन्तोष, मीठे वचन बोलना, किसी को दुख न देना, ईर्ष्या न करना, यह सब दम में सम्मिलित हैं।

19. कामनाओं को त्याग देना; उन्हें पूरा करने से श्रेष्ठ है। आज तक किस मनुष्य ने अपनी सब कामनाओं को पूरा किया है? इन कामनाओं से बाहर जाओ। पदार्थ के मोह को छोड़ दो। शान्त चित्त हो जाओ।

20. जब भीष्म पितामह मृत्यू शैया पर थे तब युधिष्टर ने उनकी लम्बी आयु व स्वस्थ जीवन के रहस्य जानने के लिए उपदेश देने की प्रार्थना की तब भीष्म पितामह ने निम्न 12 बिन्दू बताए जो आज भी प्रासंगिक हैं।

उपरोक्त के बारह बिंदू-
1.मन को वश में रखना।
2.घमंड नहीं करना।
3.विषयों की ओर बढ़ती हुई इच्छाओं को रोकना।
4.कटु वचन सुनकर भी उतर नहीं देना।
5.मार खाने पर भी शांत व सम रहना।
6.अतिथि व लाचार को आश्रय देना।
7.दूसरों की निन्दा न करना न सुनना।
8.नियमपूर्वक शास्त्र पढ़ना व सुननाच
9.दिन में नहीं सोना।
10.स्वयं आदर न चाहकर दूसरों को आदर देना।
11.क्रोध के वशीभूत नहीं रहना।
12.स्वाद के लिए नहीं स्वास्थ्य के लिए भोजन करना।

#योगी श्री मोनी नाथ जी

21/12/2023

जब भीतर से अहंकार दूर होता है,
तब भक्ति का सही रंग चढ़ता है...
क्यों कि चरण मंदिर तक पहुंचाते हैं
और *आचरण भगवान तक.* 🪔

ॐ शिव योगी आदेश 🔱

छत्रपति शिवाजी महाराज के समय में कभी भी  किसी औरत का नाच गाना नहीं हुआ। महिलाओं का हमेशा सम्मान किया जाता था चाहे वह दुश...
21/12/2023

छत्रपति शिवाजी महाराज के समय में कभी भी किसी औरत का नाच गाना नहीं हुआ। महिलाओं का हमेशा सम्मान किया जाता था चाहे वह दुश्मन की पत्नी भी क्यों ना हो सभी को अपनी माता और बहन के समान समझा जाता था।

उनका साफ कहना था महिलाओं की गरिमा हमेशा बनाए रखनी चाहिए। बेशक वह महिला किसी भी जाति या धर्म से हो क्यों ना हो!!

28 फरवरी 1678 में, सुकुजी नामक सरदार ने बेलवाड़ी किले की घेराबंदी की। इस किले की किलेदार एक स्त्री थी।

उसका नाम सावित्रीबाई देसाई था। इस बहादुर महिला ने 27 दिनों तक किले के लिए लड़ाई लड़ी। लेकिन अंत में, सुकुजी ने किले को जीत लिया और सावित्रीबाई से बदला लेने के लिए उसका अपमान किया।

जब राजे ने यह समाचार सुना, तो वह क्रोधित हो गए। राजे के आदेशानुसार सुकुजी की आंखें फोड कर उसे आजीवन कैद कर दिया गया।
24 अक्टूबर 1657 को छत्रपति शिवाजी महाराज के आदेश पर सोनेदेव ने जब कल्याण के किले पर घेराबंदी की और उसको जीत लिया। उस समय मौलाना अहमद की पुत्रवधू यानी औरंगजेब की बहन और शाहजहां की बेटी रोशनआरा जो एक अभूतपूर्व सुंदरी थी। जिसको किले में कैद कर लिया गया उसके बाद सैनिकों ने उस रोशनाआरा को जब छत्रपति शिवाजी महाराज के सामने पेश किया तो छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने सैनिकों को यह कहा की यह तुम्हारी पहली और आखरी गलती है। उसके बाद अगर ऐसा अपमानित करने का कार्य किसी भी जाति और धर्म की औरत के साथ किया तो इसकी सजा मौत होगी। फिर एक पालकी सजा कर रोशनआरा को उसके कहने पर उसके महल में भेज दिया गया। इसी प्रकार से शाइस्ता खान ने सन 1663 ईस्वी में कोंकण को जीतने के लिए अपने सेनापति दिलेर खान के साथ एक ब्राह्मण उदित राज देशमुख की पत्नी राय बाघिन (शेरनी) को भेजा तो छत्रपति शिवाजी महाराज ने राय बाघिन और मुगल दिलेरखान को रात में कोल्हापुर में ही घेर लिया और दिलेरखान अपनी जान बचा कर भाग गया। उस समय राय बाघिन को एक सजी हुई पालकी में बैठा कर वापसी उसके घर भेज दिया था।
शिवराय जी कि यह भूमिका थी कि "महिलाओं की गरिमा हमेशा बनाए रखनी चाहिए। बेशक वह किसी भी जाति या धर्म से क्यों ना हो!!"

अगर किसी दुश्मन की पत्नी भी चाहे वह किसी भी धर्म या जाति से हो, लड़ाई में फंस जाती है, तो उसे परेशानी नहीं होना चाहिए। महाराज के इस तरह के आदेश पत्थर की लकीर होते थे... और उन पर अमल भी शत प्रतिशत होता था।

20/12/2023

आप सभी से अनुरोध है कि पाखंड से बचो।

अटल सत्य
20/12/2023

अटल सत्य

आदेश आदेश आदेश
20/12/2023

आदेश आदेश आदेश

19/12/2023

" ॐ शिव गोरक्ष: "
सुप्रभात सभी भगतजनो को।

सत्य वचन
18/12/2023

सत्य वचन

भारत में बैलगाड़ी से यात्रा। फोटो लगभग 1908,
18/12/2023

भारत में बैलगाड़ी से यात्रा। फोटो लगभग 1908,

सत्य है
16/12/2023

सत्य है

15/12/2023

अहंकार सत्य सुनने की
क्षमता कम कर देता है

जय श्री नाथ जी 🙏🙏🙏🙏
14/12/2023

जय श्री नाथ जी
🙏🙏🙏🙏

💯
14/12/2023

💯

ॐ
14/12/2023

14/12/2023

ॐ शिव गोरक्ष:
🙏

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