Bharat Hamari Maa

Bharat Hamari Maa राष्ट्र प्रथम,भारतीय गौरवमयी इतिहास ?

27/12/2024

★मेहतर कौन ?★

महान कार्य के जनी महेत्तर/महार, जनेऊ भंग किया भंगी बने
जिन ब्राहमणों और क्षत्रियों ने मैला ढोने की प्रथा को स्वीकार करने के उपरांत अपने जनेऊ को तोड़ दिया, अर्थात उपनयन संस्कार को भंग कर दिया,वो भंगी कहलाए !
अपना धर्म बचाने महान कार्य करनेवाले ये काम "महत्तर" अर्थात महान कार्य जो आगे चलकर अपभ्रंश होकर मेहत्तर या महार बन गया और संविधान मे दलीत ,हरि के जन हरीजन हो गयासाहस, त्याग और बलिदान की गाथा है मेहतर जाति का इतिहास !

हमलोगों ने जिन भंगी और मेहतर जाति को अछूत करार दिया और जिनके हाथ का छुआ तक आज भी बहुत सारे हिंदू नहीं खाते,उनका पूरा इतिहास साहस, त्याग और बलिदान से भरा पड़ा है जिन गाथाओं को सुनकर हमारा सीना आज गर्व से फुल जाऐगा ! मुगल काल में ब्राह्मणों और क्षत्रियों को दो रास्ते दिए गए, या तो इस्लाम कबूल करो या फिर मुसलमानों का मैला ढोओ क्योंकि तब भारतीय समाज में इन दोनों समुदायों का अत्यंत सम्मान था और इनके लिए ऐसा घृणित कार्य करना मर जाने के समान था इसीलिए मुगलों ने इनके धर्मान्तरण के लिए यह तरीका अपनाया !
आप किसी भी मुगल किले में चले जाओ वहां आपको शौचालय नहीं मिलेगा !जबकि हजारों साल पुरानी हिंदुओं की उन्नत सिंधु घाटी सभ्यता के खण्डहरों में रहने वाले कमरे से सटा शौचालय जरुर मिलता है !कबीलेवाले लुटेरे सुल्तानों और मुगलों को शौचालय निर्माण का ज्ञान तक नहीं था !
दिल्ली सल्तनत में बाबर, अकबर, शाहजहाँ से लेकर सभी मुगल बादशाह बर्तनों में शौच करते थे,जिन्हें उन ब्राहम्णों और क्षत्रियों के परिजनों से फिकवाया जाता था,जिन्होंने इस्लाम को अपनाने से इनकार कर दिया था !जिन ब्राहमणों और क्षत्रियों ने मैला ढोने की प्रथा को स्वीकार करने के उपरांत अपने जनेऊ को तोड़ दिया, अर्थात उपनयन संस्कार को भंग कर दिया,
वो भंगी कहलाए !तत्कालिन हिंदू समाज ने इनके मैला ढोने की नीच प्रथा को भी'महत्तर' अर्थात महान और बड़ा करार दिया था, जो अपभ्रंश रूप में 'मेहतर' हो गया !

भारत में 1000 ईस्वी में केवल 1 फीसदी अछूत जाति थी,
लेकिन मुगल वंश की समाप्ति होते-होते इनकी संख्या 14 फीसदी हो गई ! आपने सोचा कि ये 13 प्रतिशत की बढोत्तरी मुगल शासन में कैसे हो गई !जो हिंदू डर और अत्याचार के मारे इस्लाम धर्म स्वीकार करते चले गए, उन्हीं के वंशज आज भारत में मुस्लिम आबादी बडा रहे हैं !जिन ब्राह्मणों और क्षत्रियों ने मरना स्वीकार कर लिया उन्हें काट डाला गया और उनके असहाय परिजनों को इस्लाम कबूल नहीं करने की सजा के तौर पर अपमानित करने के लिए नीच मैला ढोने के कार्य में धकेल दिया गया !वही लोग भंगी और मेहतर कहलाए !
डॉ सुब्रहमनियन स्वामी लिखते हैं,
'' अनुसूचित जाति उन्हीं बहादुर ब्राह्मण व क्षत्रियों के वंशज है,
जिन्होंने जाति से बाहर होना स्वीकार किया,
लेकिन मुगलों के जबरन धर्म परिवर्तन को स्वीकार नहीं किया !
आज के हिंदू समाज को उन गौरवशाली जनजागृतीका शुक्रगुजार होना चाहिए, क्योंकि उन लोगों ने हिंदू के भगवा ध्वज को कभी झुकने नहीं दिया,भले ही स्वयं अपमान व दमन झेला !''
प्रख्यात साहित्यकार अमृत लाल नागर ने अनेक वर्षों के शोध के बाद पाया कि जिन्हें "भंगी", "मेहतर" महार"आदि कहा गया,
वे सब ब्राहम्ण और क्षत्रिय थे !

--स्टेनले राइस ने अपने पुस्तक "हिन्दू कस्टम्स एण्ड देयर ओरिजिन्स" में यह भी लिखा है कि अछूत मानी जाने वाली जातियों में प्राय: वे बहादुर जातियां भी हैं, जो मुगलों से हारीं तथा उन्हें अपमानित करने के लिए मुसलमानों ने अपने मनमाने काम करवाए थे !

--गाजीपुर के श्री देवदत्त शर्मा चतुर्वेदी ने सन् 1925 में एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम 'पतित प्रभाकर' अर्थात मेहतर जाति का इतिहास था ! इस छोटी-सी पुस्तक में "भंगी","मेहतर",महर "हलालखोर", "चूहड़" आदि नामों से जाने गए लोगों की किस्में दी गई हैं, जो इस प्रकार हैं (पृ. 22-23)

नाम जाति भंगी- वैस, वैसवार, बीर गूजर (बग्गूजर), भदौरिया, बिसेन, सोब, बुन्देलिया, चन्देल, चौहान, नादों,यदुबंशी, कछवाहा, किनवार-ठाकुर, बैस, भोजपुरी राउत,गाजीपुरी राउत, गेहलौता, मेहतर, महर,भंगी, हलाल, खरिया, चूहड़- गाजीपुरी राउत, दिनापुरी राउत, टांक, गेहलोत, चन्देल, टिपणी !

इन जातियों के जो यह सब भेद हैं,
वह सबके सब क्षत्रिय जाति के ही भेद या किस्म हैं ! (देखिए ट्राइब एण्ड कास्ट आफ बनारस, छापा सन् 1872 ई.)
यह भी देखिए कि सबसे अधिक इन अनुसूचित जातियों के लोग आज के उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल, मध्य भारत में है,
जहां मुगलों के शासन का सीधा हस्तक्षेप था और जहां सबसे अधिक धर्मांतरण हुआ ! आज सबसे अधिक मुस्लिम आबादी भी इन्हीं प्रदेशों में है, जो धर्मांतरित हो गये थे !

और एक अध्ययन के मुकाबले 2061 से आप इसी देश में अल्पसंख्यक होना शुरू हो जाएंगे ! इसलिए भारतीय व हिंदू मानसिकता का विकास कीजिए और अपने सच्चे इतिहास से जुड़िए !
आज हिंदू समाज को अंग्रेजों और वामपंथियों के लिखे पर इतना भरोसा हो गया कि उन्होंने खुद ही अपना स्वाभिमान कुचल लिया और अपने ही भाईयों को अछूत बना डाला !
आज भी पढे लिखे और उच्च वर्ण के हिंदू जातिवादी बने हुए हैं, लेकिन वह नहीं जानते कि यदि आज यदि वह बचे हुए हैं तो अपने ऐसे ही भाईयों के कारण जिन्होंने नीच कर्म करना तो स्वीकार किया,
लेकिन इस्लाम को नहीं अपनाया !

-डॉ सुब्रहमनियन स्वामी लिखते हैं, '' अनुसूचित जाति उन्हीं बहादुर ब्राह्मण व क्षत्रियों के वंशज है, जिन्होंने जाति से बाहर होना स्वीकार किया, लेकिन मुगलों के जबरन धर्म परिवर्तन को स्वीकार नहीं किया ! आज के हिंदू समाज को उनका शुक्रगुजार होना चाहिए, उन्हें कोटिश: प्रणाम करना चाहिए, क्योंकि उन लोगों ने हिंदू के भगवा ध्वज को कभी झुकने नहीं दिया, भले ही स्वयं अपमान व दमन झेला !''

-प्रख्यात साहित्यकार अमृत लाल नागर ने अनेक वर्षों के शोध के बाद पाया कि जिन्हें "भंगी", "मेहतर" आदि कहा गया, वे ब्राहम्ण और क्षत्रिय थे ।हमारे ये भाई जिन्होंने पीढ़ी दर पीढ़ी अत्याचार और अपमान सहकर भी हिन्दुत्व का गौरव बचाये रखा।
Narendra singh

27/12/2024
आपने दर्जनों बार पढा सुना होगा कि कालिदास भारत के शेक्सपियर थे। समुद्रगुप्त भारत के नेपोलियन थे, आदि आदि... यहाँ तक कि म...
27/12/2024

आपने दर्जनों बार पढा सुना होगा कि कालिदास भारत के शेक्सपियर थे। समुद्रगुप्त भारत के नेपोलियन थे, आदि आदि... यहाँ तक कि महर्षि वेदव्यास के लिए 'होमर ऑफ इंडिया' भी कहा जाता रहा है। क्या यह अजीब नहीं है?
कश्मीर भारत का स्विट्जरलैंड है, मुंबई या अहमदाबाद भारत का मैनचेस्टर है, गोआ भारत का रोम है...वगैरह वगैरह...
कालिदास शेक्सपियर से लगभग लगभग हजार वर्ष पूर्व हुए थे। साहित्य की सामान्य समझ रखने वाला विद्यार्थी भी जानता है कि कालिदास शेक्सपियर से बहुत ऊपर की चीज थे। शेक्सपियर न भाषाई कौशल में उनके आसपास पहुँचते हैं, न भावों में न ही कथा कल्पना में...
लगभग यही स्थिति है नेपोलियन की। नेपोलियन ने कुल पाँच लाख वर्गमील क्षेत्र पर अधिकार प्राप्त किया था, जबकि समुद्रगुप्त का विजित क्षेत्र कम से कम इसका दुगुना था। नेपोलियन के सामने ही उनका पूरा राज्य उनकी मुट्ठी से फिसल गया और वे कैद में मरे, जबकि समुद्रगुप्त सदैव विजेता ही रहे। फिर कहीं से भी समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहे जाने की तुक है? नहीं।
दरअसल यूरोप वाले जब दुनिया में निकले तो उनका लक्ष्य केवल साम्राज्य बढ़ाना नहीं था, बल्कि उन्हें संसार में यूरोपीय श्रेष्ठताबोध स्थापित करना था। उन्होंने लम्बे समय तक योजनाबद्ध तरीके से इसपर काम किया। वे संसार की तार्किक परंपराओं को भी अंधविश्वास और अपनी फूहड़ आदतों को विज्ञान सम्मत सिद्ध करते गए। और इस तरह अपने गुलाम देशों के लोगों के मन में वे यह यूरोपीय श्रेष्ठताबोध स्थपित करने में एक हद तक सफल भी हुए।
यह बात केवल यूरोपीय विद्वानों की ही नहीं है। अरब देश के लड़ाके भी जब उस रेगिस्तान से निकले तो वे तलवार के साथ साथ श्रेष्ठताबोध ले कर चल रहे थे। उनका मूल लक्ष्य ही पूरी दुनिया पर अपनी संस्कृति थोपना था।
दरअसल कोई आक्रांता यदि अपने व्यक्तिगत उत्थान के लिए युद्ध करे और लगातार विजयी भी हो, तब भी उसकी सत्ता उसकी आयु के साथ ढल ही जाती है। पर यदि वह अपनी संस्कृति का ध्वज ले कर आगे बढ़े तो उसके थकते ही कोई और मजबूत हाथ वह ध्वज थाम लेता है। इस तरह जीत की वह यात्रा शताब्दियों, सहस्त्राब्दियों तक चलती है। यही अरबियों ने किया, यही यूरोपियों ने भी किया।
अब इसी तराजू पर भारतीय बौद्धिकता को तौलिए। यहाँ बौद्धिकता का ठप्पा लगते ही व्यक्ति अपनी सभ्यता, अपनी परंपराओं अपने पूर्वजों को कोसने लगता है। उसे सारी कमियां अपने ही देश में दिखती हैं। यह हीनताबोध इतना प्रबल है कि इस देश में बौद्धिक कहलाने की पहली शर्त ही अपनी चीजों को दोयम दर्जे का मानना है।
अंग्रेजी में एक टर्म है युरोसेंट्रीज्म! यूरोप को श्रेष्ठ मानते हुए हर व्यक्ति, वस्तु, या विचार को यूरोपीय दृष्टि से देखना। यूरोपीय मूल्यों को ही विश्व के लिए सही मानना, और शेष संसार को दोयम दर्जे का मान लेना। हालांकि यह शब्द एक वामी विचारक का दिया हुआ है, फिर भी भारतीय बौद्धिकों पर यह सटीक दिखता है।
भारत को इस हीनताबोध से बाहर निकलना होगा। सच यही है कि शेक्सपियर को यदि यूरोप का कालिदास कहें तो शेक्सपियर का गौरव बढ़ेगा।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

तस्वीर शेक्सपियर के नाटक पर बनी एक बॉलिउडिया फिल्म की है। आप मेघदूत या अभिज्ञान शाकुन्तलम पर किसी फिल्म की उम्मीद नहीं कर सकते।

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26/12/2024

वीर बाल दिवस (साहिबजादा दिवस) के अवसर पर उ.प्र. के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सरकारी आवास पर आज श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के पावन स्वरूप का आगमन हुआ।
मुख्यमंत्री ने श्रीगुरुग्रन्थ साहिब को अपने सिर पर उठाकर अपना परम सम्मान दिया।

26/12/2024

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