04/02/2024
नहले पर दहला
हक व बराबरी का अधिकार
नहले पर दहला
शिखिर पर बैठे हुए वो व्यक्ति ही हमको याद रह जाते है
जो प्रतिस्पर्धा अंहकार और इर्ष्या को नीचे छोड़ आते हैं
अनहंकार स्नेह और समझौते को अपने मन में रखकर
वो अपने इतिहास की एक सुंदर इबारत लिख जाते है।
(अरूण)
इंतजार
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इन्तजार ने खुद आज जब इन्तजार किया
तब वो समझ पाया कि यह क्या हुआ?
दौड़ते हुए समय की जब रफ्तार उसने देखी
तब ही वो जान पाया कि दर्द कहां हुआ।
इन्तजार के जब रूप बिखरे जब चारों तरफ
हर तरफ करते हुए हर कोई इन्तजार मिला
कहीं कल्पनाए इन्तजार में डूबीं हुई दिखी
तो कहीं पर वास्तविक इंतजार मिला।
कहीं रात को सुबह होने का इंतजार मिला
तो कहीं प्यार के इजहार का इंतजार दिखा
इंतजार के आसपास ही जब कटा यह जीवन
तब इस जीवन को मोक्ष का इंतजार दिखा।
(अरूण देव सेवक)
दूर का सफर
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नहीं जानते थे हम कि ऐसा हो जायेगा
जो कुछ पास में है वो भी खो जायेगा
रखवाली हम करते रहें जिन सांसों की
शरीर ही उसे छोड़ कर चला जायेगा
सारी कोशिशे धरी रह जाएगी यहां पर
और वो जैसा चाहेगा वैसा हो जायेगा
यहां आने का रास्ता तो हमें दिखेगा मगर
जाने का रास्ता नजर नहीं आयेगा।
जीवन यहां जीयेंगे हम उनके माफिक
कुछ भी हमारे मन का नहीं हो पायेगा
ना कोई अपना होगा ना पराया यहां पर
सभी कुछ यही पर छूट जायेगा।
हमारी पहचान ही अब यहां हमारा नाम होगी
हमारे कर्मो की इबारत ही हमारी शान होगी
उस समय ही हम याद आयेंगे अब लोगों को
जिस घड़ी में कभी मौत की बात होगी।
अपने पराए भी इसी धरा पर छूट जायेंगे
हमारे सफर में भी साथ नहीं आयेंगे
अकेला ही चलना होगा मुझे अब उस पथ पर
दूर तक जहां सितारे नजर आयेंगे।
(अरूण देव सेवक)
महाकाल
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शिव भोले का नाम लिया जब हो गया बेड़ापार
बम बम भौले नाम जपा तब जीवन हुआ उद्घार
पृथ्वी सृष्टि के तुम जननायक गंगा के अवतार
निर्मल धारा के उस जल से चलती सांसे आज।
तेरे नेत्र की ज्योति देती मुझको प्रकाश का भान
तेरे डमरू की आवाजें बनती मेरे धड़कन की चाल
तेरे मस्तक पर सजा चन्द्रमा देता शीतल का ज्ञान
तेरे तिरशूल के सहांर से टूटता दुशमन का अभिमान।
देवताओं के तुम देवा हो कहते तुमको महादेव
गौरी मांता की जब शक्ति मिलती बनता एक संदेश
सत्कर्मो और दुष्कर्मो में जब मैं नहीं कर पाता भेद
स्मरण तुम्हारा शक्ति देता तब उसमें हो जाता भेद
मेरी विनती सुनकर देवा मुझे दे दो आशीर्वाद
तेरे सृष्टि के इस टुकड़े पर जीवन रहे आवाद
बम बम भौले जय शिव शंकर बोलूं मैं बारंबार
पृथ्वी पर मे शिव को ढूंढू जिसका जग में आधार।
(अरूण देव सेवक)
स्वरचित कविता
शीर्षक
दिनांक 29/05/2023
जीवन में कभी कभी ऐसी मनोरंजक घटनाएं घट जाती है जो जीवन पर्यन्त याद रहती है तथा हमारा मन जब भी उसके बिषय में सोचता है तब बड़ी हंसी आती है। मेरे साथ भी एक साईकल को लेकर दो बार ऐसी घटनाएं हुई जो अब सोचता हूं तो बड़ा अजीब लगता है और मन हंसने लगता है।
साइकल से सम्बंधित एक घटना तब की है जब मैं पढ़ता था। रोजाना शाम को में कोचिंग क्लास के लिए घर से साइकल से जाता था।उस दिन भी जब मैं कोचिंग के लिए निकला तब मेरे कुछ करीबी मित्रों ने मुझसे कहा कि चलो आज कोचिंग छोड़ कर फिल्म देखने चलते हैं। उनकी बात सुनकर में सोच में पड़ गया कि आखिर क्या किया जाए।मगर दिल ने शायद फिल्म देखने के लिए हामी भर दी थी।अमर अकबर एंथनी फिल्म की उन दिनों बहुत धूम थी।मैं अपने मित्रों के साथ अपने घर में बिना बताए चोरी से फिल्म देखने चला गया। अपनी साइकल को स्टेन्ड पर जमा करके मै फिल्म देखने लगा।रात को जब फिल्म छूटी तब में तेजी से भागकर साईकल स्टेन्ड पर गया मगर मैंने देखा की बहुत सी साईकले स्टेन्ड पर एक के उपर एक करके लगी थी और अपनी साइकल की बारी आने पर लोग अपनी अपनी साईकिलें ले रहे थे ।मैं भी अपनी साईकल पाने के लिए इंतजार करने लगा अपना नम्बर देरी से आने के कारण मैं घर पर जब देरी से पहुंचूंगा तब मम्मी पापा नाराज़ होंगे यह सोचकर मुझे डर लग रहा था । धीरे धीरे एक के बाद एक साइकले निकल रही थी में अपनी साईकल की बारी आने का इंतजार कर रहा था मगर जब मैंने गौर से देखा तब मुझे लगा कि अब बची हुई साईकिलों में मेरी साइकल शायद नहीं है।और अंत में हुआ भी यही और सब साइकले उठ गई और एक ही बची।स्टेंड के कर्मचारी से जब मैंनै अपनी साईकल के बारे में पूछा तब उसने कहा भैया आपकी साइकल शायद बदल गई है यह जो बची है यह आप ले जाईए कल दोपहर बाद आ जाना जो ले गया होगा वो दे जायेगा तब आप बदल लेना। उसकी यह बात सुनकर में चकरा गया मैं सोचने लगा कि अब मेरा इस साईकल के आधार पर घर से किसी बात को छिपाना मुश्किल होगाऔर मुझे सच्चाई बतानी ही होगी। मरता क्या ना करता मैं उस साइकल को लेकर घर चला गया।घर आकर जो मेरे साथ हुआ वो मैं ही जानता हूं पर अगले दिन मेरी अपनी खोई हुई साइकल मुझे मिल गयी और मैं उसको खुशी खुशी बापस ले आया।
अब एक साइकल से सम्बंधित एक ओर घटना मेरे साथ और घंटी उस समय मैं वी एस सी का छात्र था थोड़ा मनोरंजन के लिए शाम को एक चौराहे पर एक चाय की दुकान पर चला जाता था जहां हम बहुत सारे दोस्त मिलकर बतियाते थे।उस दिन भी मैं हमेशा की तरह शाम को गया और दोस्तों के साथ बातों में मशगूल हो गया।पर जब बापस चलने को हुआ तब मैंने देखा बहां पर मेरी साइकल नहीं थी इधर उधर देखा पर वो दिखाई नहीं दी मैं समझ गया कि साइकल चोरी हो गई मैं बहुत देर तक यही सोचता रहा कि अब क्या करूं तभी मेरी नजर पास खड़ी एक दूसरी साइकल पर पड़ी जो बहुत देर से खड़ी थी तथा उसको लेने कोई नहीं आ रहा था आपसी परामर्श के बाद हम सभी को यह लगने लगा कि मेरी साइकल शायद किसी से बदल गई है और वो धोखे से मेरी साइकल ले गया है और अपनी छोड़ गया है। यही बात मानकर मैंने कुछ देर और इंतजार किया और अन्तः उस साइकल को लेकर घर आ गया। उन दिनों मेरे पापा की पोस्टिंग रबर फैक्ट्री में थी और बो रोज आते जाते रहते थे।उस शाम जब वो बापस घर पर आये तब उन्होंने मुझे बताया कि कल एक आदमी घर पर आयेगा और तुम्हारी साईकिल दे जायेगा तुम ले लेना और उसको उसकी साइकिल दे देना।मैं उनकी बात सुनकर हतप्रभ रह गया कि आखिर यह हुआ कैसे। मैंने जब इस बारे में अपने पापा से जब पूछा तब उन्होंने बताया कि तुम्हारी साईकिल के हैन्डिल पर जो उनका नाम और विभाग का नाम गुदा है उसी आधार पर एक व्यक्ति जानकारी लेने आया था और बता रहा था कि उसकी साइकिल शायद बदल गई है।जब उसको यह पता चला कि यह मामला मेरे ही घर काह है तब वो आश्चर्य चकित हो गया और उसने यह कह दिया कि वो तुम्हारी साईकिल बापस करके अपनी साईकल बापस ले जायेगा। अगले दिन दोपहर बाद एक आदमी घर पर आया और मुझे मेरी साइकल देकर और अपनी साइकल लेकर चला गया। पूरे प्रकरण के बाद मैं यही सोचने लगा कि जीवन में कैसी कैसी घटनाएं घटती हैं जो मन को गुदगुदाती भी है और यह सोचने को मंज़ूर भी करती है कि कैसे कोई घटना अपने आप पैदा होकर अपने आप ही खत्म हो जाती है।
अरूण देव सेवक)
संस्मरण कथा।।।मैं और मेरी साईकिल
5अप्रेल2023
कुछ तो दाल में काला है समझ रही है दुनिया
वो ही क्यों निशाना है जान रही है दुनिया।
उसकी बाते शायद खोल रहे है उनके राज
जिनको वो छिपा रहे है यह जान रही है दुनिया।
अजीब बात है यहां जहां बोल रहे हैं सब
शब्दों की मर्यादा को यहां तोड़ रहे हैं सब ।
पर अकेला वो गुनहगार बन गया है यहां
क्योंकि कानून से अभी बचें हुए हैं सब।
यही हाल रहा तो यह सबसे अच्छा होगा
तुले हुए बोल ही अब हमें सुनाए जायेंगे।
मर्यादा रहेगी तब हमारी आपस मे
और इस तरह हम गुनाहों से बच जायेंगे।
नहीं लगता मगर हमें की आगे भी ऐसा होगा
अपने स्वार्थ के लिए फिर यहां पहले जैसा होगा।
नियम कानून हमारे बीच मे धरे रह जायेंगे ।
और दूसरो को नीचा दिखाने से ही वो ऊंचा होगा ।
(अरूण देव सेवक)
स्वरचित कविता । शब्दों की मर्यादा
बदली छा गई है शायद आज बरसात होगी
लगता है उनसे आज बात होगी ।
प्रेम के बीज जो पड़े थे मेरे मन में
कलियां फूटेगी उनमें आज और बागों में बहार होगी।
(अरूण)
बदलने के लिए बदलना जरूरी है
प्रगति के लिए रास्ता जरूरी है
अपने सपनों को तुमको पूरा करना है अगर
तब कठिन परिश्रम करना जरूरी है
बहुत देखे तुम्हारे सपने
अब हमारे जाग जाने का मन है
छिप छिपकर देखा बहुत तुमको अब तक हमने
अब तुम्हारे साथ चलने का मन है।
ईमानदारी कर ना सके कभी वो अपने आप से
झूठ बोलते रहे वो हमेशा बड़े इतमिनान से।
मौहब्बत करते रहे वो हमसे छिप छिपकर
और धोखा वो खुद को देते रहे अपने आप से।
(अरूण देव सेवक)
मन तो करता है उड़ कर पहुँच जाऊ
उन ठिकानों पर
जहाँ सपने बुना करते थे अपनी तकदीर
का जीवन
। अरूण ।
आज एक नमूना और छाटा जायेगा।
Civil Lines
Bareilly
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