10/04/2020
मन से निकली बात - विचार और विश्वास:
विचारों का बने रहना और विश्वास का बन जाना ठीक वैसे ही है कि ये मान लेना कि सूरज निकलता है तो सुबह होती है ढलता है तो रात। ये विश्वास है कि सूरज ही निकलता है। ये विश्वास मनुष्य को विचारों को रोकने का पहला कदम है। विचारों का बने रहना मतलब सूरज निकलने और ढलने की प्रक्रिया में सवाल उठना। जब उठे तो पता चलता है कि सूरज नहीं निकलता पृथ्वी उसके चक्कर काटती है। यही विचार मनुष्य को विज्ञान की तरफ मोड़ते हैं। विश्वास ही मुनष्य को धर्म में बांध देता है। आप सवाल नहीं करते बस मान लेते हैं। इसीलिए विज्ञान विश्व में एक सा होता है लेकिन धर्म नहीं। विज्ञान को तर्क की कसौटी पर परखा जाता है धर्म को कभी कसौटी पर परखा गया होता तो धर्म के नाम पर इतनी मौतें न हो रही होती। हो सकता है धर्म को भी कभी विचारों की कसौटी पर परखा गया हो लेकिन अब वो विश्वास बन चुके हैं। महान विचारक और राजनीति की समझ रखने वाले अरस्तू ने ऐसा ही विश्वास रोम को दिया कि महिलाओं के बत्तीस दांत नहीं होते जबकि उसकी या समाज में लगभग हर किसी के पास दो या कम से कम एक स्त्री तो होती ही थी। सैकड़ों सालों तक वो विश्वास पलता गया और हर कोई उसका पालन भी करता रहा। स्वयं स्त्रियों ने भी उस विश्वास को मन से बांधे रखा। किसी ने न इस पर विचार की कोशिश की तो सवाल का प्रश्न ही कहाँ। विज्ञान के आने के बाद यह विश्वास धराशाही हो चुका। आप अपने विचार न रोकें। विश्वास में फंस न जायें। हो सकता है आपकी कोई मजबूरी हो उस विश्वास को जकड़कर रखने की लेकिन यकीन मानिए उन विश्वास के ऊपर आप अपने आने वाली पीढ़ी को एक रुका सड़ा समाज, एक तर्कविहीन पशु जीवन और आशा विहीन जिंदगी का भद्दा तोहफा दे रहे हैं। गीता कहती है कि धर्म मनुष्य के विचारों गतिशीलता पर निर्भर करता है। भयवश या स्वार्थवश आप अपने विचार एक जगह केंद्रित कर चुके हैं जिसमें उन विश्वासों का कुछ नहीं बिगड़ेगा क्योंकि सड़ चुके विश्वासों का कुछ नहीं बिगड़ सकता लेकिन ये विश्वास जरूर से जिंदादिल मानव जीवन को खत्म करने की क्षमता रखते हैं। आप आधे मर चुके हैं क्योंकि आपने इन विश्वासों को पकड़ने के विश्वास पर भी विश्वास कर लिया है। आधा आप इनके कारण खुद ही आज न सही कल एक दूसरे को खत्म कर चुके होंगे।
ज्योत्स्ना।